सावन बीता जाए..
सावन बीता जाए..
मनुहार कातर मन की, क्यों नहीं प्रीतम आए।
किस दिश, पथ ठहरे, क्यों नही पाती पाए॥
री सावन बीता जाए…
पथराए नैन, सूखे हलक बदन झर- झर ढहता जाए।
सुनसान जीवन राह, हर क्षण सहमा- सहमा आए॥
री सावन बीता जाए …
थे मेघ मेरे जो, किस आंगन बरसाए?
बोल जरा, किस हृदय आंगन ठहरा’ए?
री सावन बीता जाए …
तपे बदन, रह-रह तेरा मेह नीर सताए।
आ बुझी आस में, फिर से बीज लगाए॥
री तू क्यों नहीं सजनी आए … री तू क्यों नहीं सजनी आए,
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